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Friday, 3 July 2015

बस तुम ही तुम . . .

बस तुम ही तुम . . . 
बारिश के बाद की 
सुहानी धूप सी तुम 
केशों से टपकती 
पानी की बूंद सी तुम 
ठंड से कपकपाये 
गुलाबी होठों सी तुम 
कुछ कहने के लिए खुले 
लरजते लफ्ज़ों सी तुम 
फूलों से मीठा रस 
सोखती तितली सी तुम
डाल डाल फुदकती 
नन्हीं गुरैया सी तुम 
रात भर ओस में भीगी 
हरी दूब सी तुम 
सितारों सजी ओढनी ओढे 
चांद को आंचल में छुपाती सी तुम
भोर तले पनघट पर 
कृष्ण की राधिका सी तुम 
ख्वाबों की खिड़की से झांकती 
ख्वाबों की ताबीर सी तुम
मंजिल की तलाश में चलती 
मेरी छाव सी तुम
तुमसे जुड़ी मेरी हर सांस
दिल की हर धड़कन सी तुम. . . . .

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